एक छोटी सी कहानी , मैंने लिखी है ...
*****चाँद और परिंदे की प्रेम कहानी ******
एक परिंदे ने चाँद को धीरे धीरे बड़ा होते देखा तो उसे लगा की वो चाँद उसके तरफ आ रहा है , बस चंद दिनों में वो उस चाँद से मोहब्बत कर बैठा और सारी रात बस उसे देखते अपने तरफ आता सोचता रहा |
कभी उस परिंदे ने उड़ के चाँद के पास जाने की भी कोशिशे भी की मगर थक कर फिर वापस घर लौट आता |
फिर आया वो पूर्णिमा की रात जब वो चाँद और नजदीक दिखने लगा , उसे लगा मानो उसकी हर हसरत पूरी होने वाली है ,
मगर दूसरे दिन से उस चाँद को फिर उसे अपने से दूर जाते देखने लगा | रोज रोज वो चाँद फिर छोटा होने लगा |
वो परिंदा काफी परेशां रहने लगा , काफी कोशीश कर फिर उस चाँद तक पहुंचना चाहा , थका लेकिन फिर भी उड़ता रहा , कोशिश बहुत की मगर हालत इस कदर हो गया उसका की वो मुँह खोले उल्टा हो उस चाँद के तरफ देखता धरती पे आ गिरा |
कुछ महीना हो गया वो इसी तरह पूर्णिमा के रात का बेशब्री से इंतज़ार करता और अमावस्या को उसी तरह चाँद को खोजते खोजते बेहाल हो के मिटटी , कीचड़ , पानी में गिर परता |
काफी दिनों से उसके इस हालत को देख के एक बूढ़े परिंदे ने कहा , बस कर वहां पहुंच पाना संभव नहीं , तो उस परिंदे ने मुश्कुरा के कहा , "पता है उस चाँद को पाना मुमकिन नहीं , मगर उनसे मिलने के इस मुहब्बत को भुला पाना भी मुमकिन नहीं ,थकता हु , गिरता हु , चोट लगती है मगर फिर भी खुश हु , क्यों की ये चोट ही है जो दिन भर उसके यादो को मुझसे लपेटे रहती है " |
कभी उस परिंदे ने उड़ के चाँद के पास जाने की भी कोशिशे भी की मगर थक कर फिर वापस घर लौट आता |
फिर आया वो पूर्णिमा की रात जब वो चाँद और नजदीक दिखने लगा , उसे लगा मानो उसकी हर हसरत पूरी होने वाली है ,
मगर दूसरे दिन से उस चाँद को फिर उसे अपने से दूर जाते देखने लगा | रोज रोज वो चाँद फिर छोटा होने लगा |
वो परिंदा काफी परेशां रहने लगा , काफी कोशीश कर फिर उस चाँद तक पहुंचना चाहा , थका लेकिन फिर भी उड़ता रहा , कोशिश बहुत की मगर हालत इस कदर हो गया उसका की वो मुँह खोले उल्टा हो उस चाँद के तरफ देखता धरती पे आ गिरा |
कुछ महीना हो गया वो इसी तरह पूर्णिमा के रात का बेशब्री से इंतज़ार करता और अमावस्या को उसी तरह चाँद को खोजते खोजते बेहाल हो के मिटटी , कीचड़ , पानी में गिर परता |
काफी दिनों से उसके इस हालत को देख के एक बूढ़े परिंदे ने कहा , बस कर वहां पहुंच पाना संभव नहीं , तो उस परिंदे ने मुश्कुरा के कहा , "पता है उस चाँद को पाना मुमकिन नहीं , मगर उनसे मिलने के इस मुहब्बत को भुला पाना भी मुमकिन नहीं ,थकता हु , गिरता हु , चोट लगती है मगर फिर भी खुश हु , क्यों की ये चोट ही है जो दिन भर उसके यादो को मुझसे लपेटे रहती है " |
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