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Tuesday, April 24, 2018

खुले आंखों से देखा हर वो ख्वाब ढूंढता हु,
भटकते हुए युही मंजिल की सही राह ढूंढता हुँ।
मिल रही हर सज़ा का हस्ते हुए गुनाह ढूंढता हु
उलझे जिंदगी के सवालो का बस जबाब ढूंढता हु ।
देव

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