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Tuesday, April 24, 2018

ये अधूरा सा कविता मैने लिखा है....आनंद लीजिये 😌अगर पूरा हो पाए तो कर दीजिए😌
बेजुबान सा चल रहा हु पथरीले राहो में ,
एक आश लिए ,सोने को मिट्टी की बाहों में ।
कंकर ,भूख और प्यास से लड़ते हुए,
अनंत तक दिख रहे मुश्किलो से ,थोड़ा सा डरते हुए ।
सहमे से है कदम ,मगर हौसला अभी भी बुलंद है ,
फफक रही धड़कन,मगर सासों का रफ्तार हो रही मंद है।
ना कोई और , ना जानवर , ना पक्षियों की चहक है ,
बस साथ है कोई तो वो मैं ,और मेरे सपनों की महक है ।

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