कल तक जो था देश की शान,
आज उसका अपमान क्यो?
महँगाई को इतना बढ़ा,
ले रहे हो इनकी जान क्यो?
प्रकृति इन्हे तो मार ही रही है,
तुम भी खीच रहे हो प्राण क्यो?
उनके खून से सिंचा अन्न ख़ाके,
इन्हे ही कर रहे हो परेशान क्यो?
फेकने से फ़ुर्सत मिले तो सोचना ज़रूर,
आत्महत्या को मजबूर सारे किसान क्यो?
:- देवचंद्र ठाकुर
Saturday, April 23, 2016
Thursday, April 7, 2016
देश की धड़कन" फ़ौजियो " पे चन्द पंक्तिया मेरे तरफ से
फ़ौजियो की कुर्बानी तुम्हे समझ कहाँ आता है,
भारत माँ के शान के खातिर वो गोलिया सिने पर ख़ाता है|
कभी महीने कभी सालो तक वो घर नही जाता है
कभी पहाड़ कभी बारफ़ो पर अपना आसिया बनाता है|
फ़ौजियो की कुर्बानी तुम्हे कहाँ समझ आता है|| मा बहन और बीबी का याद उन्हे भी आता है दिल का एक कोना उनसे मिलने को ललचाता है| सब इक्षा दफ़न कर वो हरदम मुस्कुराता है फ़ौजियो की कुर्बानी तुम्हे समझ कहाँ आता है||
कभी गर्मी कभी ठंडी कभी तेज बरसातो मे, बन पर्वत खड़ा रहता है ,बंदूक लिए वो हाथो मे| कही जलता है कही तिठुरता है रातो मे
लड़ता रहता है दुश्मनो से कफ़न बँधे वो माथौ पे|| वो खुद जागता है ताकि हम सो सके शांति और ख़ुशियो के लिए हम ना रो सके|
उनकी जीत की दुआ माँग लेना खुदा से अगर हो सके ताकि इतने कुर्बनियो के बाद हम और कुछ ना खो सके||
ज़य हिंद
:- देवचंद्र ठाकुर
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