कल तक जो था देश की शान,
आज उसका अपमान क्यो?
महँगाई को इतना बढ़ा,
ले रहे हो इनकी जान क्यो?
प्रकृति इन्हे तो मार ही रही है,
तुम भी खीच रहे हो प्राण क्यो?
उनके खून से सिंचा अन्न ख़ाके,
इन्हे ही कर रहे हो परेशान क्यो?
फेकने से फ़ुर्सत मिले तो सोचना ज़रूर,
आत्महत्या को मजबूर सारे किसान क्यो?
:- देवचंद्र ठाकुर
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