ये रास्ते जो दूर बहुत दूर सीधी सीधी जा रही है इन रास्तो से बहुत करीब का रिश्ता रहा है कभी ।
वक्त घर के बाद ज्यादातर यही बिता है कभी।
वो इमली का पेड़ जो छोटी लगने लगी है अभी छोड़ तक देख नही पाते थे इसके , हाँ बहुत छोटे थे तभी ।
स्कूल से भाग के कई बार छीपे थे इस पेड़ के पीछे।
पहली बार साईकल भी चलाये थे इसी पेड़ के पास नीचे।
जब भी देखता हूं इसमे इमली का गुच्छा , मन प्रफुल्लित हो जाता है ।
वो बोरा ले के स्कूल जाना , वो तू ही राम है तू रहीम है वाला प्राथना ,।
टिफिन में इमली तोड़ने जाना। फिर लौटने के बाद
क्लास में बैठे मास्टर के पान की खुशबू देह में दहसत पैदा कर देती थी ।
।।।
कभी कभी क्लास से लिए 5 मिनट के छुट्टी को घंटो तक खीच देते थे।
दोस्तो के साथ बाहर युही घूमते फिरते थे ।
वक्त घर के बाद ज्यादातर यही बिता है कभी।
वो इमली का पेड़ जो छोटी लगने लगी है अभी छोड़ तक देख नही पाते थे इसके , हाँ बहुत छोटे थे तभी ।
स्कूल से भाग के कई बार छीपे थे इस पेड़ के पीछे।
पहली बार साईकल भी चलाये थे इसी पेड़ के पास नीचे।
जब भी देखता हूं इसमे इमली का गुच्छा , मन प्रफुल्लित हो जाता है ।
वो बोरा ले के स्कूल जाना , वो तू ही राम है तू रहीम है वाला प्राथना ,।
टिफिन में इमली तोड़ने जाना। फिर लौटने के बाद
क्लास में बैठे मास्टर के पान की खुशबू देह में दहसत पैदा कर देती थी ।
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कभी कभी क्लास से लिए 5 मिनट के छुट्टी को घंटो तक खीच देते थे।
दोस्तो के साथ बाहर युही घूमते फिरते थे ।
लेकिन अच्छा नही लगा इतना वीरान देख के इस जगह को ,
शायद इस जहग को भी अच्छा नही लग रहा होगा ऐसे रहना ।
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शायद इस जहग को भी अच्छा नही लग रहा होगा ऐसे रहना ।
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