Tuesday, April 24, 2018

मोमबत्ती क्या जलाई आज , सारा बचपन सामने नजर आने लगा । 
वो समय ही अच्छा था जब बल्ब और ट्यूब लाइट शिर्फ़ शहरों के नखड़े हुआ करते थे 
वो डिबिया और लेम्प के सामने सरकारी रंगा हुआ किताब जोर से पढ़ने का भी अपना मज़ा था।
वो पीली रोशनी फेकती तीन सलिया टॉर्च
निप्पो की बैट्री जिसे धूप में रखना पड़ता था कभी कभी ।
कितना सादा जीवन था लोगो का उस समय
एक टॉर्च से पूरा परिवार काम चला लेता था ,आज क्या समय आ गया है ।।।
अंधेरा में जुगनू का पीछा करना
टीम टीम करते तारो को देख कर किसी और दुनिया मे खो जाना ।
रात में उठ कर कभी कभी दीवार से टकरा जाना।
ठंड की रात और चापाकल का पानी सूख जाना।
हल्के होने के लिए जागना और बिस्तर पर जाते वक्त पत्तो के सरसराहट को सुन तेजी से भागना।
रात मे दुआर पे बाबा के पास सोना और बीच रात में भाग के दादी माँ के पास आंगन आ जाना ।
कितना आनद दयाक था वो पल ।
सबसे ज्यादा खुशी वो पल को याद कर के आता है कि कभी अगर रात में पोटी लग जाती थी तो डाट सुनने के डर से सुबह का इंतज़ार करना 😜
सुबह सुबह 4 बजे उठ कर परीक्षा के समय में लालटेन जला के पढना और दरवाजे पे गाय के आंख को चमकते देखना । रास्ते से पूजा करने जा रहे लोगो के आवाज़ से उसको पहचानने की कोशिश करना ।
और पता नही कहा से लेकिन दूर ,बहुत दूर से लाउडस्पीकर की हल्की हल्की आवाज़ जिसपे 90s के गाने बजते हुए।
सिंघार और अन्य फूलो का गमक पूरे वातावरण की पवित्र करती रहती थी ।।
सच कहु तो स्वर्ग से भी सुंदर था वो पल।

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